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कंगाल विधवा का दान

(मारक 12:41-44)

21 मसीह येशु ने देखा कि धनी व्यक्ति दानकोष में अपना-अपना दान डाल रहे हैं. उन्होंने यह भी देखा कि एक निर्धन विधवा ने दो छोटे सिक्के डाले हैं. इस पर मसीह येशु ने कहा, “सच यह है कि इस निर्धन विधवा ने उन सभी से बढ़कर दिया है. इन सबने तो अपने धन की बढ़ती में से दिया है किन्तु इस विधवा ने अपनी कंगाली में से अपनी सारी जीविका ही दे दी है.”

अन्त काल की घटनाओं का प्रकाशन

(मत्ति 24:1-25; मारक 13:1-23)

जब कुछ शिष्य मन्दिर के विषय में चर्चा कर रहे थे कि यह भवन कितने सुन्दर पत्थरों तथा मन्नत की भेंटों से सजाया है; मसीह येशु ने उनसे कहा, “जिन वस्तुओं को तुम इस समय सराह रहे हो, एक दिन आएगा कि इन भवनों का एक भी पत्थर दूसरे पर स्थापित न दिखेगा—हर एक पत्थर भूमि पर पड़ा होगा.”

उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “गुरुवर, यह कब घटित होगा तथा इनके पूरा होने के समय का चिन्ह क्या होगा?”

मसीह येशु ने उत्तर दिया, “सावधान रहना कि तुम भटका न दिए जाओ, क्योंकि मेरे नाम में अनेक आएंगे और दावा करेंगे, ‘मैं मसीह हूँ’ तथा ‘वह समय पास आ गया है’, किन्तु उनकी न सुनना. जब तुम युद्धों तथा बलवों के समाचार सुनो तो भयभीत न होना. इनका पहले घटना ज़रूरी है फिर भी इनके तुरन्त बाद अन्त नहीं होगा.”

10 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “राष्ट्र राष्ट्र के तथा राज्य राज्य के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. 11 भीषण भूकम्प आएंगे. विभिन्न स्थानों पर महामारियां होंगी तथा अकाल पड़ेंगे. भयावह घटनाएँ होंगी तथा आकाश में अचम्भित दृश्य दिखाई देंगे.

12 “इन सबके पहले वे तुम्हें पकड़ लेंगे और तुम्हें यातनाएँ देंगे. मेरे नाम के कारण वे तुम्हें सभागृहों में ले जाएँगे, बन्दीगृह में डाल देंगे तथा तुम्हें राजाओं और राज्यपालों के हाथों में सौंप देंगे. 13 इसके परिणामस्वरूप तुम्हें गवाही देने का सुअवसर प्राप्त हो जाएगा. 14 इसलिए यह सुनिश्चित करो कि तुम पहले ही अपने बचाव की तैयारी नहीं करोगे, 15 क्योंकि तुम्हें अपने बचाव में कहने के विचार तथा बुद्धि मैं दूँगा, जिसका तुम्हारे विरोधी न तो सामना कर सकेंगे और न ही खण्डन. 16 तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन तथा परिजन और मित्र ही तुम्हारे साथ धोखा करेंगे—वे तुम में से कुछ की तो हत्या भी कर देंगे. 17 मेरे नाम के कारण सभी तुमसे घृणा करेंगे. 18 फिर भी तुम्हारे एक बाल तक की हानि न होगी. 19 तुम्हारे धीरज में छिपी होगी तुम्हारे जीवन की सुरक्षा.

20 “जिस समय येरूशालेम नगर सेनाओं द्वारा घिरा हुआ दिखे, तब यह समझ लेना कि विनाश पास है. 21 तब वे, जो यहूदिया प्रदेश में हैं, भाग कर पर्वतों की शरण लें; वे, जो नगर में हैं, नगर छोड़ कर चले जाएँ; जो नगर के बाहर हैं, वे नगर में प्रवेश न करें 22 क्योंकि यह बदला लेने का समय होगा कि वह सब, जो लेखों में पहले से लिखा है, पूरा हो जाए. 23 दयनीय होगी गर्भवती और दूध पिलाती स्त्रियों की स्थिति! क्योंकि यह मनुष्यों पर क्रोध तथा पृथ्वी पर घोर संकट का समय होगा.

24 “वे तलवार से घात किए जाएँगे, अन्य राष्ट्र उन्हें बन्दी बना कर ले जाएँगे. येरूशालेम नगर अन्यजातियों द्वारा उस समय तक रौंदा जाएगा जब तक अन्यजातियों का समय पूरा न हो जाए.

25 “सूर्य, चन्द्रमा और तारों में अद्भुत चिह्न दिखाई देंगे. पृथ्वी पर राष्ट्रों में आतंक छा जाएगा. उफ़नते सागर की लहरों के कारण लोग घबरा जाएँगे. 26 लोग भय और इस आशंका से मूर्च्छित हो जाएँगे कि अब संसार का क्या होगा क्योंकि आकाश की शक्तियाँ हिला दी जाएँगी. 27 तब वे मनुष्य के पुत्र को बादल में सामर्थ्य और प्रताप में नीचे आता हुआ देखेंगे. 28 जब ये घटनाएँ घटित होने लगें, साहस के साथ स्थिर खड़े हो कर आनेवाली घटना की प्रतीक्षा करो क्योंकि समीप होगा तुम्हारा छुटकारा.”

29 तब मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा शिक्षा दी: “अंजीर के पेड़ तथा अन्य वृक्षों पर ध्यान दो. 30 जब उनमें कोंपलें निकलने लगती हैं तो तुम स्वयं जान जाते हो कि गर्मी का समय पास है. 31 इसी प्रकार, जब तुम इन घटनाओं को घटित होते हुए देखो तो तुम यह जान जाओगे कि परमेश्वर का राज्य अब पास है.

32 “वस्तुत: यह पीढ़ी उस समय तक समाप्त नहीं होगी जब तक ये सभी घटनाएँ घटित न हो जाएँ. 33 आकाश और पृथ्वी का लुप्त हो जाना सम्भव है किन्तु मेरे शब्दों का बिलकुल नहीं.

34 “सावधान रहना कि तुम्हारा हृदय जीवन सम्बन्धी चिन्ताओं, दुर्व्यसनों तथा मतवालेपन में पड़ कर सुस्त न हो जाए और वह दिन तुम पर अचानक से फन्दे जैसा आ पड़े. 35 उस दिन का प्रभाव पृथ्वी के हर एक मनुष्य पर पड़ेगा. 36 हमेशा सावधान रहना, प्रार्थना करते रहना कि तुम्हें इन आनेवाली घटनाओं से निकलने के लिए बल प्राप्त हो और तुम मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति में खड़े हो सको.”

37 दिन के समय मसीह येशु मन्दिर में शिक्षा दिया करते तथा सन्ध्याकाल में वह ज़ैतून पर्वत पर जा कर प्रार्थना करते हुए रात बिताया करते थे. 38 लोग भोर में उनका प्रवचन सुनने मन्दिर आ जाया करते थे.

मसीह येशु की हत्या का षड्यन्त्र

(मत्ति 26:1-5; मारक 14:1, 2)

22 अख़मीरी रोटी का उत्सव, जो फ़सह पर्व कहलाता है, पास आ रहा था. प्रधान याजक तथा शास्त्री इस खोज में थे कि मसीह येशु को किस प्रकार मार डाला जाए, किन्तु उन्हें लोगों का भय था.

शैतान ने कारियोतवासी यहूदाह में, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रवेश किया. उसने प्रधान पुरोहितों तथा अधिकारियों से मिल कर निश्चित किया कि वह किस प्रकार मसीह येशु को पकड़वा सकता है. इस पर प्रसन्न हो वे उसे इसका दाम देने पर सहमत हो गए. यहूदाह मसीह येशु को उनके हाथ पकड़वा देने के ऐसे सुअवसर की प्रतीक्षा करने लगा, जब आसपास भीड़ न हो.

फ़सह भोज की तैयारी

(मत्ति 26:17-19; मारक 14:12-16)

तब अख़मीरी रोटी का उत्सव आ गया, जब फ़सह का मेमना बलि किया जाता था. मसीह येशु ने पेतरॉस और योहन को इस आज्ञा के साथ भेजा, “जाओ और हमारे लिए फ़सह की तैयारी करो.”

उन्होंने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, हम किस स्थान पर इसकी तैयारी करें, आप क्या चाहते हैं?”

10 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “नगर में प्रवेश करते ही तुम्हें एक व्यक्ति पानी का घड़ा ले जाता हुआ मिलेगा. उसका पीछा करते हुए तुम उस घर में चले जाना, 11 जिस घर में वह प्रवेश करेगा. उस घर के स्वामी से कहना, ‘गुरु ने पूछा है, “वह अतिथि कक्ष कहाँ है जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ फ़सह खाऊँगा?” ’ 12 वह तुमको एक विशाल, सुसज्जित ऊपरी कक्ष दिखाएगा; तुम वहीं सारी तैयारी करना.”

13 यह सुन वे दोनों वहाँ से चले गए और सब कुछ ठीक वैसा ही पाया जैसा मसीह येशु ने कहा था. उन्होंने वहाँ फ़सह तैयार किया.

14 नियत समय पर मसीह येशु अपने प्रेरितों के साथ भोज पर बैठे. 15 उन्होंने प्रेरितों से कहा, “मेरी बड़ी लालसा थी कि मैं अपने दुःख-भोग के पहले यह फ़सह तुम्हारे साथ खाऊँ. 16 क्योंकि सच यह है कि मैं इसे दोबारा तब तक नहीं खाऊँगा जब तक यह परमेश्वर के राज्य में पूरा न हो.”

17 तब उन्होंने प्याला उठाया, परमेश्वर के प्रति धन्यवाद दिया और कहा, “इसे लो, आपस में बांट लो 18 क्योंकि यह निर्धारित है कि जब तक परमेश्वर के राज्य का आगमन न हो जाए, मैं दाखरस दोबारा नहीं पिऊँगा.”

प्रभु-भोज का प्रतिष्ठापन

19 तब उन्होंने रोटी ली, धन्यवाद देते हुए उसे तोड़ा और शिष्यों को यह कहते हुए दे दी, “यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है. मेरी याद में तुम ऐसा ही किया करना.”

20 इसी प्रकार इसके बाद मसीह येशु ने प्याला उठाया और कहा, “यह प्याला मेरे लहू में, जो तुम्हारे लिए बहाया जा रहा है, नई वाचा है.

21 “वह, जो मुझे पकड़वाएगा हमारे साथ इस भोज में शामिल है. 22 मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ कि मनुष्य का पुत्र, जैसा उसके लिए तय किया गया है, ठीक उसी के अनुसार आगे बढ़ रहा है किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जा रहा है!” 23 यह सुन वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि वह कौन हो सकता है, जो यह करने पर है.

24 उनके बीच यह विवाद भी उठ खड़ा हुआ कि उनमें से सबसे बड़ा कौन है. 25 यह जान मसीह येशु ने उनसे कहा, “अन्यजातियों के राजा उन पर शासन करते हैं और वे, जिन्हें उन पर अधिकार है, उनके हितैषी कहलाते हैं. 26 किन्तु तुम वह नहीं हो—तुममें जो बड़ा है, वह सबसे छोटे के समान हो जाए और राजा सेवक समान. 27 बड़ा कौन है—क्या वह, जो भोजन पर बैठा है या वह, जो खड़ा हुआ सेवा कर रहा है? तुम्हारे मध्य मैं सेवक के समान हूँ.

28 “तुम्हीं हो, जो मेरे विषम समयों में मेरा साथ देते रहे हो. 29 इसलिए जैसा मेरे पिता ने मुझे एक राज्य प्रदान किया है, 30 वैसा ही मैं भी तुम्हें यह अधिकार देता हूँ कि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज़ पर बैठ कर मेरे साथ संगति करो, और सिंहासनों पर बैठ कर इस्राएल के बारह वंशों का न्याय.

31 “शिमोन, शिमोन, सुनो! शैतान ने तुम सबको गेहूं के समान अलग करने की आज्ञा प्राप्त कर ली है. 32 किन्तु शिमोन, तुम्हारे लिए मैंने प्रार्थना की है कि तुम्हारे विश्वास का पतन न हो. जब तुम पहले जैसी स्थिति पर लौट आओ तो अपने भाइयों को भी विश्वास में मजबूत करना.”

33 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “प्रभु, मैं तो आपके साथ दोनों ही को स्वीकारने के लिए तत्पर हूँ—बन्दीगृह तथा मृत्यु!”

34 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सुनो, पेतरॉस, आज रात, मुर्ग तब तक बाँग न देगा, जब तक तुम तीन बार इस सच को कि तुम मुझे जानते हो, नकार न चुके होगे.”

35 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “यह बताओ, जब मैंने तुम्हें बिना बटुए, बिना झोले और बिना जूती के बाहर भेजा था, क्या तुम्हें कोई अभाव हुआ था?”

“बिल्कुल नहीं,” उन्होंने उत्तर दिया.

36 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “किन्तु अब जिस किसी के पास बटुआ है, वह उसे साथ ले ले. इसी प्रकार झोला भी और जिसके पास तलवार नहीं है, वह अपना वस्त्र बेच कर तलवार मोल ले. 37 मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि यह जो लेख लिखा है—उसकी गिनती अपराधियों में हुई—का मुझमें पूरा होना ज़रूरी है क्योंकि मुझसे सम्बन्धित सभी लेखों का पूरा होना अवश्य है.”

38 शिष्यों ने कहा, “प्रभु, देखिए, ये दो तलवारें हैं.” मसीह येशु ने उत्तर दिया, “पर्याप्त हैं.”

गेतसेमनी उद्यान में मसीह येशु की अवर्णनीय वेदना

(मत्ति 26:36-46)

39 तब मसीह येशु बाहर निकल कर ज़ैतून पर्वत पर चले गए, जहाँ वह प्रायः जाया करते थे. उनके शिष्य भी उनके साथ थे. 40 उस स्थान पर पहुँच कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “प्रार्थना करो कि तुम परीक्षा में न फँसो.”

41 तब मसीह येशु शिष्यों से कुछ ही दूरी पर गए और उन्होंने घुटने टेक कर यह प्रार्थना की: 42 “पिताजी, यदि सम्भव हो तो यातना का यह प्याला मुझसे दूर कर दीजिए फिर भी मेरी नहीं, आपकी इच्छा पूरी हो.” 43 उसी समय स्वर्ग से एक स्वर्गदूत ने आ कर उनमें बल का संचार किया. 44 प्राण निकलने के समान दर्द में वह और भी अधिक कातर भाव में प्रार्थना करने लगे. उनका पसीना लहू के समान भूमि पर टपक रहा था.

45 जब वह प्रार्थना से उठे और शिष्यों के पास आए तो उन्हें सोता हुआ पाया. उदासी के मारे शिष्य सो चुके थे. 46 मसीह येशु ने शिष्यों से कहा, “सो क्यों रहे हो? उठो! प्रार्थना करो कि तुम किसी परीक्षा में न फँसो.”

मसीह येशु का बन्दी बनाया जाना

(मत्ति 26:47-56; मारक 14:43-52; योहन 18:1-11)

47 मसीह येशु जब यह कह ही रहे थे, तभी एक भीड़ वहाँ आ पहुंची. उनमें यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, सबसे आगे था. वह मसीह येशु को चूमने के लिए आगे बढ़ा 48 किन्तु मसीह येशु ने उससे कहा, “यहूदाह! क्या मनुष्य के पुत्र को तुम इस चुम्बन के द्वारा पकड़वा रहे हो?”

49 यह पता चलने पर कि क्या होने पर है शिष्यों ने मसीह येशु से पूछा, “प्रभु, क्या हम तलवार चलाएं?” 50 उनमें से एक ने तो महायाजक के दास पर वार कर उस दास का दाहिना कान ही उड़ा दिया.

51 मसीह येशु इस पर बोले, “बस! बहुत हुआ” और उन्होंने उस दास के कान का स्पर्श कर उसे पहले जैसा कर दिया.

52 तब मसीह येशु ने प्रधान पुरोहितों, मन्दिर के पहरुओं तथा वहाँ उपस्थित पुरनियों को सम्बोधित करते हुए कहा, “तलवारें और लाठियाँ ले कर क्या आप किसी राजद्रोही को पकड़ने आए हैं? 53 आपने मुझे तब तो नहीं पकड़ा जब मैं मन्दिर आँगन में प्रतिदिन आपके साथ हुआ करता था! यह इसलिए कि यह क्षण आपका है—अन्धकार के हाकिम का.”

पेतरॉस का नकारना

(मत्ति 26:69-75; मारक 14:66-72; योहन 18:25-27)

54 वे मसीह येशु को पकड़ कर महायाजक के घर पर ले गए. पेतरॉस दूर ही दूर से उनके पीछे-पीछे चलते रहे. 55 जब लोग आँगन में आग जलाए हुए बैठे थे, पेतरॉस भी उनके साथ बैठ गए. 56 एक सेविका ने पेतरॉस को आग की रोशनी में देखा और उनको एकटक देखते हुए कहा, “यह व्यक्ति भी उसके साथ था!”

57 पेतरॉस ने नकारते हुए कहा, “नहीं! हे स्त्री, मैं उसे नहीं जानता!”

58 कुछ समय बाद किसी अन्य ने उन्हें देख कर कहा.

“तुम भी तो उनमें से एक हो!”

“नहीं भाई, नहीं!” पेतरॉस ने उत्तर दिया.

59 लगभग एक घण्टे बाद एक अन्य व्यक्ति ने बल देते हुए कहा, “निस्सन्देह यह व्यक्ति भी उसके साथ था क्योंकि यह भी गलीलवासी है.”

60 पेतरॉस ने उत्तर दिया, “महोदय, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आप क्या कह रहे हैं!” जब वह यह कह ही रहे थे कि एक मुर्ग ने बाँग दी. 61 उसी समय प्रभु ने मुड़ कर पेतरॉस की ओर दृष्टि की और पेतरॉस को प्रभु की पहले कही हुई बात याद आ गई: “इसके पहले कि मुर्ग बाँग दे, तुम आज तीन बार मुझे नकार चुके होगे.” 62 पेतरॉस बाहर चले गए और फूट-फूट कर रोने लगे.

सिपाहियों द्वारा मसीह येशु का मज़ाक उड़ाया जाना

63 जिन्होंने मसीह येशु को पकड़ा था, वे उनको ठठ्ठों में उड़ाते हुए उन पर वार करते जा रहे थे. 64 उन्होंने मसीह येशु की आँखों पर पट्टी बांधी और उनसे पूछने लगे, “अपनी भविष्यवाणी से बता, किसने वार किया है तुझ पर?” 65 इसके अतिरिक्त वे उनकी निन्दा करते हुए उनके लिए अनेक अपमानजनक शब्द भी कहे जा रहे थे.

मसीह येशु पिलातॉस के न्यायालय में

(मत्ति 27:1, 2; मारक 15:1)

66 पौ फटने पर पुरनिये लोगों ने प्रधान पुरोहितों तथा शास्त्रियों की एक सभा बुलाई और मसीह येशु को महासभा में ले गए. 67 उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “यदि तुम ही मसीह हो तो हमें बता दो.” 68 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं आपको यह बताऊँगा तो भी आप इसका विश्वास नहीं करेंगे और यदि मैं आप से कोई प्रश्न करूँ तो आप उसका उत्तर ही न देंगे; 69 किन्तु अब इसके बाद मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दायीं ओर बैठाया जाएगा.”

70 उन्होंने प्रश्न किया, “तो क्या तुम परमेश्वर के पुत्र हो?” मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जी हाँ, मैं हूँ.”

71 यह सुन वे कहने लगे, “अब हमें गवाहों की ज़रूरत ही न रही—स्वयं हमने यह इसके मुख से सुन लिया है.” इस पर सारी सभा उठ खड़ी हुई और वे मसीह येशु को राज्यपाल पिलातॉस के पास ले गए.

मसीह येशु पिलातॉस के सामने

(मत्ति 27:11-14; मारक 15:2-5; योहन 18:28-37)

23 पिलातॉस के सामने वे यह कहते हुए मसीह येशु पर दोष लगाने लगे, “हमने यह पाया है कि यह व्यक्ति हमारे राष्ट्र को भरमा रहा है. यह कयसर को कर देने का विरोध करता तथा यह दावा करता है कि वह स्वयं ही मसीह, राजा है.”

इसलिए पिलातॉस ने मसीह येशु से प्रश्न किया, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”

“सच वही है, जो आपने कहा है.” मसीह येशु ने उत्तर दिया.

इस पर पिलातॉस ने प्रधान पुरोहितों और भीड़ को सम्बोधित करते हुए घोषणा की, “मुझे इस व्यक्ति में ऐसा कोई दोष नहीं मिला कि इस पर मुकद्दमा चलाया जाए.”

किन्तु वे दृढ़तापूर्वक कहते रहे, “यह सारे यहूदिया प्रदेश में लोगों को अपनी शिक्षाओं द्वारा भड़का रहा है. यह सब इसने गलील प्रदेश में प्रारम्भ किया और अब यहाँ भी आ पहुँचा है.”

यह सुनते ही पिलातॉस ने प्रश्न किया, “क्या यह व्यक्ति गलीलवासी है?” यह मालूम होने पर कि मसीह येशु हेरोदेस के अधिकार क्षेत्र के हैं, उसने उन्हें हेरोदेस के पास भेज दिया, जो इस समय येरूशालेम नगर में ही था.

हेरोदेस के सामने मसीह येशु

मसीह येशु को देख कर हेरोदेस अत्यन्त प्रसन्न हुआ क्योंकि बहुत दिनों से उसे मसीह येशु को देखने की इच्छा थी. उसने मसीह येशु के विषय में बहुत कुछ सुन रखा था. उसे आशा थी कि वह मसीह येशु द्वारा किया गया कोई चमत्कार देख सकेगा. उसने मसीह येशु से अनेक प्रश्न किए किन्तु मसीह येशु ने कोई भी उत्तर न दिया. 10 प्रधान याजक और शास्त्री वहीं खड़े हुए थे और पूरे ज़ोर शोर से मसीह येशु पर दोष लगा रहे थे. 11 हेरोदेस और उसके सैनिकों ने अपमान करके मसीह येशु का मज़ाक उड़ाया और उन पर भड़कीला वस्त्र डाल कर वापस पिलातॉस के पास भेज दिया. 12 उसी दिन से हेरोदेस और पिलातॉस में मित्रता हो गई—इसके पहले वे एक-दूसरे के शत्रु थे.

13 पिलातॉस ने प्रधान पुरोहितों, नायकों और लोगों को पास बुलाया 14 और उनसे कहा, “तुम इस व्यक्ति को यह कहते हुए मेरे पास लाए हो कि यह लोगों को विद्रोह के लिए उकसा रहा है. तुम्हारी ही उपस्थिति में मैंने उससे पूछताछ की और मुझे उसमें तुम्हारे द्वारा लगाए आरोप के लिए कोई भी आधार नहीं मिला—न ही हेरोदेस को उसमें कोई दोष मिला है. 15 उसने उसे हमारे पास ही भेज दिया है. तुम देख ही रहे हो कि उसने मृत्युदण्ड के योग्य कोई अपराध नहीं किया है. 16 इसलिए मैं उसे कोड़े लगवा कर छोड़ देता हूँ.” 17 उत्सव के अवसर पर एक बन्दी को मुक्त कर देने की प्रथा थी.

18 भीड़ एक शब्द में चिल्ला उठी, “उसे मृत्युदण्ड दीजिए और हमारे लिए बार-अब्बा को मुक्त कर दीजिए!” 19 बार-अब्बा को नगर में विद्रोह भड़काने और हत्या के आरोप में बन्दी बनाया गया था.

20 मसीह येशु को मुक्त करने की इच्छा से पिलातॉस ने उनसे एक बार फिर विनती की 21 किन्तु वे चिल्लाते रहे, “क्रूस पर चढ़ाओ! क्रूस पर चढ़ाओ!”

22 पिलातॉस ने तीसरी बार उनसे प्रश्न किया, “क्यों? क्या है उसका अपराध? मुझे तो उसमें मृत्युदण्ड देने योग्य कोई दोष नहीं मिला. मैं उसे कोड़े लगवा कर छोड़ देता हूँ.”

23 किन्तु वे हठ करते हुए ऊँचे शब्द में चिल्लाते रहे, “क्रूस पर चढ़ाओ उसे!” तब हार कर उसे उनके आगे झुकना ही पड़ा. 24 पिलातॉस ने अनुमति दे दी कि उनकी माँग पूरी की जाए 25 और उसने उस व्यक्ति को मुक्त कर दिया, जिसे विद्रोह तथा हत्या के अपराधों में बन्दी बनाया गया था, जिसे छोड़ देने की उन्होंने माँग की थी और उसने मसीह येशु को भीड़ की इच्छानुसार उन्हें ही सौंप दिया.

क्रूस-मार्ग पर मसीह येशु

(मत्ति 27:32-34; मारक 15:21-24; योहन 19:17)

26 जब सैनिक मसीह येशु को ले कर जा रहे थे, उन्होंने सायरीनवासी शिमोन को पकड़ा, जो अपने गाँव से आ रहा था. उन्होंने मसीह येशु के लिए निर्धारित क्रूस उस पर लाद दिया कि वह उसे ले कर मसीह येशु के पीछे-पीछे जाए. 27 बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे चल रहे थे. उनमें अनेक स्त्रियाँ भी थीं, जो मसीह येशु के लिए विलाप कर रही थीं. 28 मुड़ कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “येरूशालेम की पुत्रियो! मेरे लिए रोना छोड़ कर स्वयं अपने लिए तथा अपनी सन्तान के लिए रोओ. 29 क्योंकि वे दिन आ रहे हैं जब लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे स्त्रियाँ, जो बाँझ हैं, वे गर्भ, जिन्होंने सन्तान उत्पन्न नहीं किए और वे स्तन, जिन्होंने दूध नहीं पिलाया!’ 30 तब

“‘वे पर्वतों को सम्बोधित करके कहेंगे, “हम पर आ गिरो!”
    और पहाड़ियों से, “हमको ढाँप लो!” ’

31 क्योंकि जब वे एक हरे पेड़ के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं तब क्या होगी सूखे पेड़ की दशा?”

32 अन्य दो भी, जो राजद्रोह के अपराधी थे, मसीह येशु के साथ मृत्युदण्ड के लिए ले जाए जा रहे थे. 33 जब वे कपाल नामक स्थल पर पहुँचे उन्होंने मसीह येशु तथा उन दोनों राजद्रोहियों को भी क्रूसित कर दिया—एक को मसीह येशु की दायीं ओर दूसरे को उनकी बायीं ओर. 34 मसीह येशु ने प्रार्थना की, “पिता, इनको क्षमा कर दीजिए क्योंकि इन्हें यह पता ही नहीं कि ये क्या कर रहे हैं.” उन्होंने पासा फेंक कर मसीह येशु के वस्त्र आपस में बांट लिए.

35 भीड़ खड़ी हुई यह सब देख रही थी. यहूदी राजा यह कहते हुए मसीह येशु का ठठ्ठा कर रहे थे, “इसने अन्य लोगों की रक्षा की है. यदि यह परमेश्वर का मसीह, उनका चुना हुआ है, तो अब अपनी रक्षा स्वयं कर ले.”

36 सैनिक भी उनका ठठ्ठा कर रहे थे. वे मसीह येशु के पास आ कर उन्हें घटिया दाखरस प्रस्तुत करके कह रहे थे, 37 “यदि यहूदियों के राजा हो तो स्वयं को बचा लो.”

38 क्रूस पर उनके सिर के ऊपर सूचना पत्र के रूप में यह लिखा था: यही वह यहूदियों का राजा है.

39 वहाँ लटकाए गए राजद्रोहियों में से एक ने मसीह येशु पर अपशब्दों की बौछार करते हुए कहा: “अरे! क्या तुम मसीह नहीं हो? स्वयं अपने आपको बचाओ और हमको भी!”

40 किन्तु दूसरे राजद्रोही ने डपटते हुए उससे कहा, “क्या तुझे परमेश्वर का थोड़ा भी भय नहीं है? तुझे भी तो वही दण्ड दिया जा रहा है! 41 हमारे लिए तो यह दण्ड सही ही है क्योंकि हमें वही मिल रहा है, जो हमारे बुरे कामों के लिए सही है किन्तु इन्होंने तो कुछ भी गलत नहीं किया.”

42 तब मसीह येशु की ओर देखकर उसने उनसे विनती की, “आदरणीय येशु! अपने राज्य में मुझ पर दया कीजिएगा.”

43 मसीह येशु ने उसे आश्वासन दिया, “मैं तुम पर यह सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: आज ही तुम मेरे साथ स्वर्गलोक में होगे.”

मसीह येशु की मृत्यु

(मत्ति 27:45-56; मारक 15:33-41; योहन 19:28-37)

44 यह दिन का छठा घण्टा था. सारे क्षेत्र पर अन्धकार छा गया और यह नवें घण्टे तक छाया रहा. 45 सूर्य अंधियारा हो गया, मन्दिर का परदा फट कर दो भागों में बांट दिया गया. 46 मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में पुकारते हुए कहा, “पिता! मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूँ.” यह कहते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए.

47 वह सेनापति, जो यह सब देख रहा था, यह कहते हुए परमेश्वर की वन्दना करने लगा, “सचमुच यह व्यक्ति निर्दोष था.” 48 इस घटना को देखने के लिए इकट्ठा भीड़ यह सब देख विलाप करती हुई घर लौट गयी. 49 मसीह येशु के परिचित और गलील प्रदेश से मसीह येशु के साथ आई स्त्रियाँ कुछ दूर खड़ी हुई ये सब देख रही थीं.

मसीह येशु को क़ब्र में रखा जाना

(मत्ति 27:57-61; मारक 15:42-47; योहन 19:28-42)

50 योसेफ़ नामक एक व्यक्ति थे. वह महासभा के सदस्य, सज्जन तथा धर्मी थे. 51 वह न तो यहूदी अगुवों की योजना से और न ही उसके कामों से सहमत थे. योसेफ़ यहूदियों के एक नगर अरिमथिया के निवासी थे और वह परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा कर रहे थे. 52 योसेफ़ ने पिलातॉस के पास जा कर विनती की कि मसीह येशु का शव उन्हें दे दिया जाए. 53 उन्होंने शव को क्रूस से उतार कर मलमल के वस्त्र में लपेटा और चट्टान में खोद कर बनाई गई एक क़ब्र की गुफ़ा में रख दिया. इस क़ब्र में अब तक कोई भी शव रखा नहीं गया था. 54 यह शब्बाथ की तैयारी का दिन था. शब्बाथ प्रारम्भ होने पर ही था.

55 गलील प्रदेश से आई हुई स्त्रियाँ भी उनके साथ वहाँ गईं. उन्होंने उस क़ब्र को देखा तथा यह भी कि शव को वहाँ कैसे रखा गया था. 56 तब वे सब घर लौट गए और उन्होंने अंत्येष्टि के लिए उबटन-लेप तैयार किए. व्यवस्था के अनुसार उन्होंने शब्बाथ पर विश्राम किया; किन्तु सप्ताह के पहिले दिन पौ फटते ही वे तैयार किए गए उबटन-लेपों को ले कर क़ब्र की गुफ़ा पर आईं.