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मसीह येशु का मरे हुओं में से जी उठना

(मत्ति 28:1-7; मारक 16:1-8; योहन 20:1-10)

24 सप्ताह के प्रथम दिन पौ फटते ही वे तैयार किए गए उबटन-लेपों को ले कर कन्दरा-क़ब्र पर आईं. उन्होंने क़ब्र के द्वार का पत्थर क़ब्र से लुढ़का हुआ पाया किन्तु जब उन्होंने क़ब्र की गुफ़ा में प्रवेश किया, वहाँ प्रभु मसीह येशु का शव नहीं था. जब वे इस स्थिति का निरीक्षण कर ही रही थीं, एकाएक उजले वस्त्रों में दो व्यक्ति उनके पास आ खड़े हुए. भय में डरी हुई स्त्रियों की दृष्टि भूमि की ओर ही थी कि उन्होंने स्त्रियों से प्रश्न किया, “आप लोग एक जीवित को मरे हुओं के मध्य क्यों खोज रही हैं? वह यहाँ नहीं हैं—वह दोबारा जीवित हो गए हैं. याद कीजिए जब वह आपके साथ गलील प्रदेश में थे, उन्होंने आप से क्या कहा था: ‘यह अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र कुकर्मियों के हाथों में सौंपा जाए, क्रूस पर चढ़ाया जाए और तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित हो जाए’.” अब उन्हें मसीह येशु की बातों की याद आई.

वे सभी स्त्रियाँ क़ब्र की गुफ़ा से लौट गईं और सारा हाल ग्यारह शिष्यों तथा बाकियों को सुनाया. 10 जिन स्त्रियों ने प्रेरितों को यह हाल सुनाया, वे थीं: मगदालावासी मरियम, योहान्ना तथा याक़ोब की माता मरियम तथा उनके अलावा अन्य स्त्रियाँ. 11 प्रेरितों को यह समाचार बेमतलब लगा. उन्होंने इसका विश्वास नहीं किया.

12 किन्तु पेतरॉस उठे और क़ब्र की गुफ़ा की ओर दौड़ पड़े. उन्होंने झुक कर भीतर देखा और वहाँ उन्हें वे पट्टियां, जो शव पर लपेटी गई थीं, अलग रखी हुई दिखीं. इस घटना पर अचम्भित पेतरॉस घर लौट गए.

मसीह येशु का दो यात्रियों को दिखाई देना

(मारक 16:12-13)

13 उसी दिन दो शिष्य इम्माउस नामक गाँव की ओर जा रहे थे, जो येरूशालेम नगर से लगभग ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर था. 14 सारा घटनाक्रम ही उनकी आपस की बातों का विषय था. 15 जब वे विचार-विमर्श और बातचीत में मग्न ही थे, स्वयं मसीह येशु उनके पास पहुँच कर उनके साथ-साथ चलने लगे.

16 किन्तु उनकी आँखें ऐसी बंद कर दी गई थीं कि वे मसीह येशु को पहचानने न पाएँ.

17 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “आप लोग किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?” वे रुक गए. उनके मुख पर उदासी छायी हुई थी.

18 उनमें से एक ने, जिसका नाम क्लोपस था, इसके उत्तर में उनसे यह प्रश्न किया, “आप येरूशालेम में आए अकेले ऐसे परदेसी हैं कि आपको यह मालूम नहीं कि यहाँ इन दिनों में क्या-क्या हुआ है!”

19 “क्या-क्या हुआ है?” मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया.

उन्होंने उत्तर दिया, “नाज़रेथवासी मसीह येशु से सम्बन्धित घटनाएँ—मसीह येशु, जो वास्तव में परमेश्वर और सभी जनसाधारण की नज़र में और काम में सामर्थी भविष्यद्वक्ता थे. 20 उन्हें प्रधान पुरोहितों और हमारे सरदारों ने मृत्युदण्ड दिया और क्रूस पर चढ़ा दिया. 21 हमारी आशा यह थी कि मसीह येशु इस्राएल राष्ट्र को स्वतन्त्र करवा देंगे. यह आज से तीन दिन पूर्व की घटना है. 22 किन्तु हमारे समुदाय की कुछ स्त्रियों ने हमें आश्चर्य में डाल दिया है. पौ फटते ही वे क़ब्र पर गई थीं 23 किन्तु उन्हें वहाँ मसीह येशु का शव नहीं मिला. उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने वहाँ स्वर्गदूतों को देखा है; जिन्होंने उन्हें सूचना दी कि मसीह येशु जीवित हैं. 24 हमारे कुछ साथी भी क़ब्र पर गए थे और उन्होंने ठीक वैसा ही पाया जैसा स्त्रियों ने बताया था किन्तु मसीह येशु को उन्होंने नहीं देखा.”

25 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “ओ मूर्खो! भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दबुद्धियो! 26 क्या मसीह के लिए यह ज़रूरी न था कि वह सभी यन्त्रणाएँ सह कर अपनी महिमा में प्रवेश करे?” 27 तब मसीह येशु ने पवित्रशास्त्र में स्वयं से सम्बन्धित उन सभी लिखी बातों का अर्थ उन्हें समझा दिया—मोशेह से प्रारम्भ कर सभी भविष्यद्वक्ताओं तक.

28 तब वे उस गाँव के पास पहुँचे, जहाँ उनको जाना था. मसीह येशु के व्यवहार से ऐसा भास हुआ मानो वह आगे बढ़ना चाह रहे हों 29 किन्तु उन शिष्यों ने विनती की, “हमारे साथ ही ठहर जाइए क्योंकि दिन ढल चला है और शाम होने को है.” इसलिए मसीह येशु उनके साथ भीतर चले गए.

30 जब वे सब भोजन के लिए बैठे, मसीह येशु ने रोटी ले कर आशीर्वाद के साथ उसे तोड़ा और उन्हें दे दिया. 31 तब उनकी आँखों को देखने लायक बना दिया गया और वे मसीह येशु को पहचान गए किन्तु उसी क्षण मसीह येशु उनकी आँखों से ओझल हो गए. 32 वे आपस में विचार करने लगे, “मार्ग में जब वह हमसे बातचीत कर रहे थे और पवित्रशास्त्र की व्याख्या कर रहे थे तो हमारे मन में उत्तेजना हुई थी न!”

33 तत्काल ही वे उठे और येरूशालेम को लौट गए. वहाँ उन्होंने ग्यारह शिष्यों और अन्यों को, जो वहाँ इकट्ठा थे, यह कहते पाया, 34 “हाँ, यह सच है! प्रभु मरे हुओं में से दोबारा जीवित हो गए हैं और शिमोन को दिखाई भी दिए हैं.” 35 तब इन दो शिष्यों ने भी मार्ग में हुई घटना का ब्यौरा सुनाया कि किस प्रकार भोजन करते समय वे मसीह येशु को पहचानने में समर्थ हो गए थे.

प्रेरितों पर मसीह येशु का स्वयं को प्रकट करना

(योहन 20:19-23)

36 जब वे इस बारे में बातें कर ही रहे थे, स्वयं मसीह येशु उनके बीच आ खड़े हुएहुए और उनसे बोला, “तुम्हें शान्ति मिले.”

37 वे अचम्भित और भयभीत हो गए और उन्हें लगा कि वे किसी प्रेत को देख रहे हैं. 38 मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम घबरा क्यों हो रहे हो? क्यों उठ रहे हैं तुम्हारे मन में ये सन्देह? 39 देखो, ये मेरे हाथ और पांव. यह मैं ही हूँ. मुझे स्पर्श करके देख लो क्योंकि प्रेत के हाड़-मांस नहीं होता, जैसा तुम देख रहे हो कि मेरे हैं.”

40 यह कह कर उन्होंने उन्हें अपने हाथ और पांव दिखाए 41 और जब वे आश्चर्य और आनन्द की स्थिति में विश्वास नहीं कर पा रहे थे, मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या यहाँ कुछ भोजन है?” 42 उन्होंने मसीह येशु को भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया 43 और मसीह येशु ने उसे ले कर उनके सामने खाया.

44 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे साथ रहते हुए मैंने तुम लोगों से यही कहा था: वह सब पूरा होना ज़रूरी है, जो मेरे विषय में मोशेह की व्यवस्था, भविष्यद्वक्ताओं के लेख तथा भजन की पुस्तकों में लिखा गया है.”

45 तब मसीह येशु ने उनकी समझ खोल दी कि वे पवित्रशास्त्र को समझ सकें 46 और उनसे कहा, “यह लिखा है कि मसीह यातनाएँ सहे और तीसरे दिन मरे हुओं में से दोबारा जीवित किया जाए, 47 और येरूशालेम से प्रारम्भ कर सभी राष्ट्रों में उसके नाम में पाप-क्षमा के लिए पश्चाताप की घोषणा की जाए. 48 तुम सभी इन घटनाओं के गवाह हो. 49 जिसकी प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, उसे मैं तुम्हारे लिए भेजूँगा किन्तु आवश्यक यह है कि तुम येरूशालेम में उस समय तक ठहरे रहो, जब तक स्वर्ग से भेजी गई सामर्थ्य से परिपूर्ण न हो जाओ.”

स्वर्ग में उठा लिया जाना

(मारक 16:19, 20)

50 तब मसीह येशु उन्हें बैथनियाह नामक गाँव तक ले गए और अपने हाथ उठा कर उन्हें आशीष दी. 51 जब वह उन्हें आशीष दे ही रहे थे वह उनसे विदा हो गए. 52 तब उन्होंने येशु की आराधना की और बहुत ही आनन्द में येरूशालेम लौट गए. 53 वे मन्दिर में नियमित रूप से परमेश्वर की स्तुति करते रहते थे.