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शत्रुओं से प्रेम करने की शिक्षा

(लूकॉ 6:27-36)

43 “तुम्हें यह तो मालूम है कि यह कहा गया था: अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने शत्रु से घृणा 44 किन्तु मेरा तुमसे कहना है कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो[a] और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना 45 कि तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान हो जाओ क्योंकि वह बुरे और भले, दोनों ही पर सूर्योदय करते हैं. इसी प्रकार वह धर्मी तथा अधर्मी, दोनों ही पर वर्षा होने देते हैं. 46 यदि तुम प्रेम मात्र उन्हीं से करते हो, जो तुमसे प्रेम करते हैं तो तुम किस प्रतिफल के अधिकारी हो? क्या चुंगी लेने वाले भी यही नहीं करते? 47 यदि तुम मात्र अपने बन्धुओं का ही नमस्कार करते हो तो तुम अन्यों की आशा कौन सा सराहनीय काम कर रहे हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा ही नहीं करते? 48 इसलिए ज़रूरी है कि तुम सिद्ध बनो, जैसे तुम्हारे स्वर्गीय पिता सिद्ध हैं.

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Footnotes

  1. 5:44 कुछ उत्तरवर्ती पाण्डुलिपियों के अनुसार: उन्हें आशीर्वाद दो, जो तुम्हें शाप देते हैं, उनका हित करो, जिन्हें तुमसे घृणा है.