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येशु महासभा के सामने

(मारक 14:53-65)

57 जिन्होंने येशु को पकड़ा था वे उन्हें महायाजक कायाफ़स के यहाँ ले गए, जहाँ शास्त्री तथा पुरनिये इकट्ठा थे. 58 पेतरॉस कुछ दूरी पर येशु के पीछे-पीछे चलते हुए महायाजक के प्रांगण में आ पहुँचे और वहाँ वह प्रहरियों के साथ बैठ गए कि देखें आगे क्या-क्या होता है.

59 प्रधान पुरोहितों तथा सभी परिषद का प्रयास मात्र यह था कि वे येशु के विरुद्ध झूठे गवाह खड़े कर लें और येशु को मृत्युदण्ड दिला सकें. 60 परन्तु अनेक झूठे गवाह सामने आए किन्तु मृत्युदण्ड के लिए आवश्यक दो सहमत गवाह उन्हें फिर भी न मिले. अन्त में ऐसे दो गवाह आए.

जिन्होंने कहा, 61 “यह व्यक्ति कहता था कि यह परमेश्वर के मन्दिर को नाश करके उसे तीन दिन में दोबारा खड़ा करने में समर्थ है.”

62 यह सुनते ही महायाजक उठ खड़ा हुआ और येशु से कहने लगा, “जो आरोप ये लोग तुम पर लगा रहे हैं क्या उसके बचाव में तुम्हारे पास कोई उत्तर नहीं?” 63 येशु मौन ही रहे.

तब महायाजक ने येशु से कहा, “मैं तुम्हें जीवित परमेश्वर की शपथ देता हूँ कि तुम हमें बताओ क्या तुम्हीं मसीह—परमेश्वर-पुत्र हो?”

64 येशु ने उसे उत्तर दिया, “आपने यह स्वयं कह दिया है, फिर भी, मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि इसके बाद आप मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दायीं ओर बैठे तथा आकाश के बादलों पर आता हुआ देखेंगे.”

65 यह सुनना था कि महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और कहा, “परमेश्वर-निन्दा की है इसने! क्या अब भी गवाहों की ज़रूरत है?

“आप सभी ने स्वयं यह परमेश्वर-निन्दा सुनी है. 66 अब क्या विचार है आपका?” उन्होंने उत्तर दिया, “यह मृत्युदण्ड के योग्य है.”

67 तब उन्होंने येशु के मुख पर थूका, उन पर घूंसों से प्रहार किया, कुछ ने उन्हें थप्पड़ भी मारे और फिर उनसे प्रश्न किया, 68 “मसीह महोदय! यदि आप भविष्यद्वक्ता हैं, तो अपनी भविष्यवाणी से बताइए कि आपको किसने मारा है?”

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