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भीड़ द्वारा मसीह येशु का अनुगमन

17 मसीह येशु उनके साथ पर्वत से उतरे और आ कर एक समतल स्थल पर खड़े हो गए. येरूशालेम तथा समुद्र के किनारे के नगर त्सोर और त्सीदोन से आए लोगों तथा सुनने वालों का एक बड़ा समूह वहाँ इकट्ठा था, 18 जो उनके प्रवचन सुनने और अपने रोगों से चंगाई के उद्धेश्य से वहाँ आया था. इस समूह में वे दुष्टात्मा से पीड़ित भी सम्मिलित थे, जिन्हें मसीह येशु प्रेतमुक्त करते जा रहे थे. 19 सभी लोग उन्हें छूने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि उनसे निकली हुई सामर्थ्य उन सभी को स्वस्थ कर रही थी.

20 अपने शिष्यों की ओर दृष्टि करते हुए मसीह येशु ने उनसे कहा:

“धन्य हो तुम सभी जो निर्धन हो,
    क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है.
21 धन्य हो तुम जो भूखे हो,
    क्योंकि तुम तृप्त किए जाओगे.
धन्य हो तुम जो इस समय रो रहे हो,
    क्योंकि तुम आनन्दित होगे.
22 धन्य हो तुम सभी जिनसे सभी मनुष्य घृणा करते हैं,
    तुम्हारा बहिष्कार करते हैं, तुम्हारी निन्दा करते हैं,
    तुम्हारे नाम को मनुष्य के पुत्र के
        कारण बुराई करनेवाला घोषित कर देते हैं.

23 “आनन्दित हो कर हर्षोल्लास में उछलो-कूदो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा फल होगा. उनके पूर्वजों ने भी भविष्यद्वक्ताओं को इसी प्रकार सताया था.

24 “धिक्कार है तुम पर! तुम,
    जो धनी हो! तुम अपने सारे सुख भोग चुके!
25 धिक्कार है तुम पर! तुम,
    जो अब तृप्त हो क्योंकि तुम्हारे लिए भूखा रहना निर्धारित है.
धिक्कार है तुम पर! तुम,
    जो इस समय हँस रहे हो क्योंकि तुम शोक तथा विलाप करोगे.
26 धिक्कार है तुम पर! जब सब मनुष्य तुम्हारी प्रशंसा करते हैं
    क्योंकि उनके पूर्वज झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ यही किया करते थे.”

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