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परमेश्वर अपने पुत्र को भेजता है

(मत्ती 21:33-46; मरकुस 12:1-12)

फिर यीशु लोगों से यह दृष्टान्त कथा कहने लगा: “किसी व्यक्ति ने अंगूरों का एक बगीचा लगाकर उसे कुछ किसानों को किराये पर चढ़ा दिया और वह एक लम्बे समय के लिये कहीं चला गया। 10 जब फसल उतारने का समय आया, तो उसने एक सेवक को किसानों के पास भेजा ताकि वे उसे अंगूरों के बगीचे के कुछ फल दे दें। किन्तु किसानों ने उसे मार-पीट कर खाली हाथों लौटा दिया। 11 तो उसने एक दूसरा सेवक वहाँ भेजा। किन्तु उन्होंने उसकी भी पिटाई कर डाली। उन्होंने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया और उसे भी खाली हाथों लौटा दिया। 12 इस पर उसने एक तीसरा सेवक भेजा किन्तु उन्होंने इसको भी घायल करके बाहर धकेल दिया।

13 “तब बगीचे का स्वामी कहने लगा, ‘मुझे क्या करना चाहिये? मैं अपने प्यारे बेटे को भेजूँगा।’ 14 किन्तु किसानों ने जब उसके बेटे को देखा तो आपस में सोच विचार करते हूए वे बोले, ‘यह तो उत्तराधिकारी है, आओ हम इसे मार डालें ताकि उत्तराधिकार हमारा हो जाये।’ 15 और उन्होंने उसे बगीचे से बाहर खदेड़ कर मार डाला।

“तो फिर बगीचे का स्वामी उनके साथ क्या करेगा? 16 वह आयेगा और उन किसानों को मार डालेगा तथा अंगूरों का बगीचा औरों को सौंप देगा।”

उन्होंने जब यह सुना तो वे बोले, “ऐसा कभी न हो।” 17 तब यीशु ने उनकी ओर देखते हुए कहा, “तो फिर यह जो लिखा है उसका अर्थ क्या है:

‘जिस पत्थर को कारीगरों ने बेकार समझ लिया था वही कोने का प्रमुख पत्थर बन गया?’[a]

18 हर कोई जो उस पत्थर पर गिरेगा टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा और जिस पर वह गिरेगा चकना चूर हो जायेगा।”

19 उसी क्षण यहूदी धर्मशास्त्रि और प्रमुख याजक कोई रास्ता ढूँढकर उसे पकड़ लेना चाहते थे क्योंकि वे जान गये थे कि उसने यह दृष्टान्त कथा उनके विरोध में कही है। किन्तु वे लोगों से डरते थे।

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Footnotes

  1. 20:17 भजन संहिता 118: 22 से उदाहरण लिया गया है। यीशु, इसमें “पत्थर”, किसानों द्वारा मारे गए कहानी में स्वयं को बेटा के रूप में बताता है। प्रेरितों के काम 4:11।