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अंधे को आँखें

(मत्ती 20:29-34; मरकुस 10:46-52)

35 यीशु जब यरीहो के पास पहुँच रहा था तो भीख माँगता हुआ एक अंधा, वहीं राह किनारे बैठा था। 36 जब अंधे ने पास से लोगों के जाने की आवाज़ सुनी तो उसने पूछा, “क्या हो रहा है?”

37 सो लोगों ने उससे कहा, “नासरी यीशु यहाँ से जा रहा है।”

38 सो अंधा यह कहते हुए पुकार उठा, “दाऊद के बेटे यीशु! मुझ पर दया कर।”

39 वे जो आगे चल रहे थे उन्होंने उससे चुप रहने को कहा। किन्तु वह और अधिक पुकारने लगा, “दाऊद के पुत्र, मुझ पर दया कर।”

40 यीशु रुक गया और उसने आज्ञा दी कि नेत्रहीन को उसके पास लाया जाये। सो जब वह पास आया तो यीशु ने उससे पूछा, 41 “तू क्या चाहता है? मैं तेरे लिये क्या करूँ?”

उसने कहा, “हे प्रभु, मैं फिर से देखना चाहता हूँ।”

42 इस पर यीशु ने कहा, “तुझे ज्योति मिले, तेरे विश्वास ने तेरा उद्धार किया है।”

43 और तुरन्त ही उसे आँखें मिल गयीं। वह परमेश्वर की महिमा का बखान करते हुए यीशु के पीछे हो लिया। जब सब लोगों ने यह देखा तो वे परमेश्वर की स्तुति करने लगे।

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