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परमेसर खातिर जिनगी बितई

जब मसीह ह देहें म दुःख भोगिस, त तुमन घलो ओहीच सोच के मुताबिक अपन-आप ला मजबूत करव, काबरकि जऊन ह देहें म दुःख भोगिस, ओह पाप ले छूट गीस। एकर नतीजा ए होथे कि ओह बांचे संसारिक जिनगी मनखेमन के खराप ईछा मुताबिक नइं, पर परमेसर के ईछा मुताबिक जीथे। काबरकि तुमन ओ काम म पहिली बहुंत समय बिता चुके हवव, जऊन ला मूरती-पूजा करइयामन पसंद करथें। तुमन अपन जिनगी ला छिनारीपन, काम-वासना, मतवालपन, भोग-बिलास, खाय-पीये, अऊ घिन-घिन मूरती-पूजा म बिताय हवव। मूरती-पूजा करइयामन अचरज करथें, जब तुमन ओमन के संग जंगली अऊ लापरवाही के जिनगी म सामिल नइं होवव, अऊ ओमन तुम्‍हर बेजत्ती करथें। पर ओमन परमेसर ला लेखा दिहीं, जऊन ह जीयत अऊ मरे मन के नियाय करे बर तियार हवय। एकरे कारन मरे मन ला घलो सुघर संदेस के परचार करे गीस, ताकि मनखेमन के मुताबिक ओमन के देहें म नियाय होवय, पर ओमन आतमा म परमेसर के मुताबिक जीयंय।

जम्मो चीजमन के अंत जल्दी होवइया हवय। एकरसेति, साफ मन अऊ संयमी होवव, ताकि तुमन पराथना कर सकव। जम्मो ले बड़े बात ए अय कि एक-दूसर ला बहुंते मया करव, काबरकि मया ह बहुंते पापमन ला तोप देथे। बिगर कुड़कुड़ाय एक-दूसर के पहुनई करव। 10 हर एक झन आने मन के सेवा करे बर, जऊन आतमिक बरदान पाय हवय, ओह ओकर उपयोग बिसवास सहित परमेसर के अनुग्रह म अनेक किसम ले करय।

11 कहूं कोनो गोठियावय, त अइसने गोठियावय मानो परमेसर के बचन ओकर मुहूं ले निकरथे। कहूं कोनो सेवा करय, त ओह ओ ताकत ले करय, जऊन ला परमेसर देथे, ताकि जम्मो बात म, यीसू मसीह के दुवारा परमेसर के परसंसा हो सकय। महिमा अऊ सामरथ जुग-जुग ओकर होवय। आमीन।

मसीही होय के कारन दुःख सहई

12 मयारू संगवारीमन, जऊन पीरा भरे दुःख, परखे बर तुम्‍हर ऊपर पड़े हवय, ओकर ले अचम्भो झन करव कि कोनो अनहोनी बात तुम्‍हर ऊपर होवत हवय। 13 पर आनंद मनावव कि तुमन मसीह के दुःख म सामिल हवव, ताकि जब ओकर महिमा परगट होवय, त तुमन आनंद ले मगन हो जावव। 14 कहूं मसीह के नांव के कारन तुम्‍हर बेजत्ती होथे, त अपन-आप ला धइन समझव, काबरकि महिमा अऊ परमेसर के आतमा तुम्‍हर ऊपर छइहां करथे। 15 कहूं तुमन दुःख भोगव, त ए दुःख भोगई ह एक हतियारा या चोर या कोनो आने किसम के अपराधी के रूप म झन होवय, अऊ एह आने मन के काम म बाधा डलइया के रूप म घलो झन होवय। 16 पर कहूं तुमन एक मसीही के रूप म दुःख भोगथव, त एकर बर झन लजावव, पर परमेसर के इस्तुति करव, कि मसीह के नांव तुम्‍हर संग हवय। 17 नियाय के समय आ गे हवय अऊ परमेसर के मनखेमन के नियाय पहिली करे जाही, अऊ कहूं एकर सुरूआत हमर ले होथे, त ओमन के अंत कइसने होही, जऊन मन परमेसर के सुघर संदेस ला नइं मानय? 18 जइसने कि परमेसर के बचन ह कहिथे,

“यदि धरमीमन बर उद्धार पाना कठिन ए,
    त भक्तिहीन अऊ पापी मन के का होही?”

19 एकरसेति, जऊन मन परमेसर के ईछा के मुताबिक दुःख उठाथें, ओमन अपन-आप ला अपन बिसवास के काबिल सिरिस्टी करइया परमेसर के हांथ म सऊंप देवंय, अऊ बने काम करे म लगे रहंय।