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इस्राएल के इतिहास से शिक्षाएं और चेतावनी

10 प्रियजन, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनजान रहो कि हमारे सारे पूर्वज बादल की छाया में यात्रा करते रहे, और सभी ने समुद्र पार किया. उन सभी का मोशेह में, बादल में और समुद्र में बपतिस्मा हुआ. सबने एक ही आत्मिक भोजन किया, सबने एक ही आत्मिक जल पिया क्योंकि वे सब एक ही आत्मिक चट्टान में से पिया करते थे, जो उनके साथ-साथ चलती थी और वह चट्टान थे मसीह. यह सब होने पर भी परमेश्वर उनमें से बहुतों से संतुष्ट न थे इसलिए जंगल में ही उनके प्राण ले लिए गए.

ये सभी घटनाएँ हमारे लिए चेतावनी थीं कि हम बुराई की लालसा न करें, जैसे हमारे पूर्वजों ने की थी. न ही तुम मूर्तिपूजक बनो, जैसे उनमें से कुछ थे, जैसा पवित्रशास्त्र का लेख है: वे बैठे तो खाने-पीने के लिए और उठे तो नाचने के लिए. हम वेश्यागामी में लीन न हों, जैसे उनमें से कुछ हो गए थे और परिणामस्वरूप एक ही दिन में तेईस हज़ार की मृत्यु हो गई. न हम प्रभु को परखें, जैसे उनमें से कुछ ने किया और साँपों के ड़सने से उनका नाश हो गया. 10 न ही तुम कुड़कुड़ाओ, जैसा उनमें से कुछ ने किया और नाश करने वाले द्वारा नाश किए गए.

11 उनके साथ घटी हुई ये घटनाएँ चिन्ह थीं, जो हमारे लिए चेतावनी के रूप में लिखी गईं क्योंकि हम उस युग में हैं, जो अन्त के पास है. 12 इसलिए वह, जो यह समझता है कि वह स्थिर है, सावधान रहे कि कहीं गिर न पड़े. 13 कोई ऐसी परीक्षा तुम पर नहीं आई, जो सभी के लिए सामान्य न हो. परमेश्वर विश्वासयोग्य हैं. वह तुम्हें किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़ने देंगे, जो तुम्हारी क्षमता के परे हो परन्तु वह परीक्षा के साथ उपाय भी करेंगे कि तुम स्थिर रह सको.

मूर्तियों से सम्बन्धित उत्सव और प्रभु भोज

14 इसलिए प्रियजन, मूर्तिपूजा से दूर भागो. 15 यह मैं तुम्हें बुद्धिमान मानते हुए कह रहा हूँ: मैं जो कह रहा हूँ उसको परखो. 16 वह धन्यवाद का प्याला, जिसे हम धन्यवाद करते हैं, क्या मसीह के लहू में हमारी सहभागिता नहीं? वह रोटी, जो हम आपस में बाँटते हैं, क्या मसीह के शरीर में हमारी सहभागिता नहीं? 17 एक रोटी में हमारी सहभागिता हमारे अनेक होने पर भी हमारे एक शरीर होने का प्रतीक है. 18 इस्राएलियों के विषय में सोचो, जो वेदी पर चढ़ाई हुई बलि खाते हैं, क्या इसके द्वारा वे एक नहीं हो जाते? 19 क्या है मेरे कहने का मतलब? क्या मूर्ति को चढ़ाई हुई वस्तु का कोई महत्व है या उस मूर्ति का कोई महत्व है? 20 बिलकुल नहीं! मेरी मान्यता तो यह है कि जो वस्तुएं अन्यजाति चढ़ाते हैं, वे उन्हें प्रेतों को चढ़ाते हैं—परमेश्वर को नहीं. 21 यह हो ही नहीं सकता कि तुम प्रभु के प्याले में से पियो और प्रेतों के प्याले में से भी; इसी प्रकार यह भी नहीं हो सकता कि तुम प्रभु की मेज़ में सहभागी हो और प्रेतों की मेज़ में भी. 22 क्या हम प्रभु में जलन पैदा करने का दुस्साहस कर रहे हैं? क्या हम प्रभु से अधिक शक्तिशाली हैं?

मूर्तियों को समर्पित भोजन

23 उचित तो सभी कुछ है किन्तु सभी कुछ लाभदायक नहीं. उचित तो सभी कुछ है किन्तु सभी कुछ उन्नति के लिए नहीं. 24 तुम में से हरेक अपने भले का ही नहीं परन्तु दूसरे के भले का भी ध्यान रखे.

25 अपनी अन्तरात्मा की भलाई के लिए बिना कोई प्रश्न किए माँस विक्रेताओं के यहाँ से जो कुछ उपलब्ध हो, वह खा लो, 26 क्योंकि पृथ्वी और पृथ्वी में जो कुछ भी है सभी कुछ प्रभु का ही है.

27 यदि किसी अविश्वासी के आमन्त्रण पर उसके यहाँ भोजन के लिए जाना ज़रूरी हो जाए तो अपनी अन्तरात्मा की भलाई के लिए, बिना कोई भी प्रश्न किए वह खा लो, जो तुम्हें परोसा जाए. 28 किन्तु यदि कोई तुम्हें यह बताए, “यह मूर्तियों को भेंट बलि है,” तो उसे न खाना—उसकी भलाई के लिए, जिसने तुम्हें यह बताया है तथा विवेक की भलाई के लिए. 29 मेरा मतलब तुम्हारे अपने विवेक से नहीं परन्तु उस अन्य व्यक्ति के विवेक से है—मेरी स्वतन्त्रता भला क्यों किसी दूसरे के विवेक द्वारा नापी जाए? 30 यदि मैं धन्यवाद देकर भोजन में शामिल होता हूँ तो उसके लिए मुझ पर दोष क्यों लगाया जाता है, जिसके लिए मैंने परमेश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट किया?

31 इसलिए तुम चाहे जो कुछ करो, चाहे जो कुछ खाओ या पियो, वह परमेश्वर की महिमा के लिए हो. 32 तुम न यहूदियों के लिए ठोकर का कारण बनो, न यूनानियों के लिए और न ही परमेश्वर की कलीसिया के लिए; 33 ठीक जिस प्रकार मैं भी सबको सब प्रकार से प्रसन्न रखता हूँ और मैं अपने भले का नहीं परन्तु दूसरों के भले का ध्यान रखता हूँ कि उन्हें उद्धार प्राप्त हो.