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पुस्तक कौन खोल सकता है?

फिर मैंने देखा कि जो सिंहासन पर विराजमान था, उसके दाहिने हाथ में एक लपेटा हुआ पुस्तक[a] अर्थात् एक ऐसी पुस्तक जिसे लिखकर लपेट दिया जाता था। जिस पर दोनों ओर लिखावट थी। तथा उसे सात मुहर लगाकर मुद्रित किया हुआ था। मैंने एक शक्तिशाली स्वर्गदूत की ओर देखा जो दृढ़ स्वर से घोषणा कर रहा था, “इस लपेटे हुए पुस्तक की मुहरों को तोड़ने और इसे खोलने में समर्थ कौन है?” किन्तु स्वर्ग में अथवा पृथ्वी पर या पाताल लोक में कोई भी ऐसा नहीं था जो उस लपेटे हुए पुस्तक को खोले और उसके भीतर झाँके। क्योंकि उस पुस्तक को खोलने की क्षमता रखने वाला या भीतर से उसे देखने की शक्ति वाला कोई भी नहीं मिल पाया था इसलिए मैं सुबक-सुबक कर रो पड़ा। फिर उन प्राचीनों में से एक ने मुझसे कहा, “रोना बन्द कर। सुन, यहूदा के वंश का सिंह जो दाऊद का वंशज है विजयी हुआ है। वह इन सातों मुहरों को तोड़ने और इस लपेटे हुए पुस्तक को खोलने में समर्थ है।”

फिर मैंने देखा कि उस सिंहासन तथा उन चार प्राणियों के सामने और उन पूर्वजों की उपस्थिति में एक मेमना खड़ा है। वह ऐसे दिख रहा था, मानो उसकी बलि चढ़ाई गयी हो। उसके सात सींग थे और सात आँखें थीं जो परमेश्वर की सात आत्माएँ हैं। जिन्हें समूची धरती पर भेजा गया था। फिर वह आया और जो सिंहासन पर विराजमान था, उसके दाहिने हाथ से उसने वह लपेटा हुआ पुस्तक ले लिया। जब उसने वह लपेटा हुआ पुस्तक ले लिया तो उन चारों प्राणियों तथा चौबीसों प्राचीनों ने उस मेमने को दण्डवत प्रणाम किया। उनमें से हरेक के पास वीणा थी तथा वे सुगन्धित सामग्री से भरे सोने के धूपदान थामे थे; जो संत जनों की प्रार्थनाएँ हैं। वे एक नया गीत गा रहे थे:

“तू यह पुस्तक लेने को समर्थ है,
    और जो इस पर लगी मुहर खोलने को
क्योंकि तेरा वध बलि के रूप कर दिया,
    और अपने लहू से तूने परमेश्वर के हेतु
    जनों को हर जाति से, हर भाषा से, सभी कुलों से, सब राष्ट्रों से मोल लिया।
10 और तूने उनको रूप का राज्य दे दिया। और हमारे परमेश्वर के हेतु उन्हें याजक बनाया।
    वे धरती पर राज्य करेंगे।”

11 तभी मैंने देखा और अनेक स्वर्गदूतों की ध्वनियों को सुना। वे उस सिंहासन, उन प्राणियों तथा प्राचीनों के चारों ओर खड़े थे। स्वर्गदूतों की संख्या लाखों और करोड़ों थी 12 वे ऊँचे स्वर में कह रहे थे:

“वह मेमना जो मार डाला गया था, वह पराक्रम, धन, विवेक, बल, आदर,
    महिमा और स्तुति प्राप्त करने को योग्य है।”

13 फिर मैंने सुना कि स्वर्ग की, धरती पर की, पाताल लोक की, समुद्र की, समूची सृष्टि—हाँ, उस समूचे ब्रह्माण्ड का हर प्राणी कह रहा था:

“जो सिंहासन पर बैठा है और मेमना का स्तुति,
    आदर, महिमा और पराक्रम सर्वदा रहें!”

14 फिर उन चारों प्राणियों ने “आमीन” कहा और प्राचीनों ने नत मस्तक होकर उपासना की।

Footnotes

  1. 5:1 पुस्तक एक लम्बा लपेटा हुआ कागज अथवा चमड़ा जिसे प्राचीन युग में लिखने के काम में लाया जाता था।

पुस्तक तथा मेमना

जो सिंहासन पर बैठे थे, उनके दायें हाथ में मैंने एक पुस्तक देखी, जिसके पृष्ठों पर दोनों ओर लिखा हुआ था, तथा जो सात मोहरों द्वारा बन्द की हुई थी. तब मैंने एक शक्तिशाली स्वर्गदूत को देखा, जो ऊँचे शब्द में यह घोषणा कर रहा था, “कौन है वह, जिसमें यह योग्यता है कि वह इन मोहरों को तोड़ सके तथा इस पुस्तक को खोल सके?” न तो स्वर्ग में, न पृथ्वी पर और न ही पृथ्वी के नीचे कोई इस योग्य था कि इस पुस्तक को खोल या पढ़ सके. मेरी आँखों से आँसू बहने लगे क्योंकि कोई भी ऐसा योग्य न निकला, जो इस पुस्तक को खोल या पढ़ सके. तब उन पुरनियों में से एक ने मुझसे कहा, “बन्द करो यह रोना! देखो, यहूदा कुल का वह सिंह, दाविद वंश का मूल जयवन्त हुआ है कि वही इन सात मोहरों को तोड़े. वही इस पुस्तक को खोलने में सामर्थी है.”

तब मैंने एक मेमने को, मानो जिसका वध बलि के लिए कर दिया गया हो, सिंहासन, चारों प्राणियों तथा पुरनियों के बीच खड़े हुए देखा, जिसके सात सींग तथा सात आँखें थीं, जो सारी पृथ्वी पर भेजे गए परमेश्वर की सात आत्मा हैं. मेम्ने ने आगे बढ़कर, उनके दायें हाथ से, जो सिंहासन पर विराजमान थे, इस पुस्तक को ले लिया. जब उसने पुस्तक ली तो चारों प्राणी तथा चौबीसों प्राचीन उस मेमने के सामने नतमस्तक हो गए. उनमें से हरेक के हाथ में वीणा तथा धूप—पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं—से भरे सोने के बर्तन थे. वे यह नया गीत गा रहे थे:

“आप ही पुस्तक लेकर इसकी मोहरें खोलने के योग्य हैं.
    आपका वध बलि के लिए किया गया तथा आपने अपने लहू द्वारा हर एक गोत्र,
    भाषा, जन, राष्ट्र तथा मनुष्यों को परमेश्वर के लिए मोल लिया है.
10 आपने उन्हें परमेश्वर की प्रजा बनाया तथा परमेश्वर की सेवा के लिए
    पुरोहित ठहराया गया है. वे इस पृथ्वी पर राज्य करेंगे.”

11 तब मैंने अनेकों स्वर्गदूतों का शब्द सुना, ये स्वर्गदूत अनगिनत थे—हज़ारों और हज़ारों. ये स्वर्गदूत सिंहासन, चारों प्राणियों तथा पुरनियों के चारों ओर खड़े हुए थे. 12 वे स्वर्गदूत ऊँचे शब्द में यह गा रहे थे:

“वह मेमना, जिसका वध किया गया,
    सामर्थ्य, वैभव, ज्ञान, शक्ति, आदर,
    महिमा और स्तुति का अधिकारी है.”

13 इसी प्रकार मैंने सारी सृष्टि—स्वर्ग में, इस पृथ्वी पर तथा इस पृथ्वी के नीचे, समुद्र तथा उसमें बसी हुई हर एक वस्तु को यह कहते सुना:

“मेमने का तथा उनका,
जो सिंहासन पर बैठे हैं,
    स्तुति, आदर, महिमा तथा प्रभुता,
सदा-सर्वदा रहे.”

14 चारों प्राणियों ने कहा, “आमेन” तथा पुरनियों ने दण्डवत् हो आराधना की.