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बेटा ह स्वरगदूतमन ले बड़े ए

पहिली जमाना म, परमेसर ह हमर पुरखामन ले, कतको बार अऊ कतको किसम ले अगमजानीमन के दुवारा गोठियाईस, पर ए आखिरी दिन म, ओह हमर ले अपन बेटा के दुवारा गोठियाईस, जऊन ला ओह जम्मो चीज के ऊपर वारिस ठहराईस अऊ ओकरे दुवारा, ओह संसार ला बनाईस। ओह परमेसर के महिमा के अंजोर ए अऊ ओह परमेसर के रूप के एकदम सही परतिनिधि ए अऊ ओह अपन सामरथी बचन के दुवारा जम्मो चीजमन ला संभालके रखथे। ओह मनखेमन के पाप ला सुध करके, स्‍वरग म परमेसर के जेवनी हांथ कोति जा बईठिस। एकरसेति ओह स्वरगदूतमन ले जादा उत्तम ठहरिस, जइसने कि परमेसर ह ओला स्वरगदूतमन ले उत्तम नांव घलो दे रिहिस।

काबरकि परमेसर ह कोनो स्‍वरगदूत ला कभू ए नइं कहिस,

“तेंह मोर बेटा अस;
    आज मेंह तोला पैदा करेंव।”[a]

या फेर ए नइं कहिस,

“मेंह ओकर ददा होहूं,
    अऊ ओह मोर बेटा होही।”[b]

पर जब परमेसर ह अपन पहिलांत बेटा ला संसार म लानथे, त कहिथे,

“परमेसर के जम्मो स्वरगदूतमन ओकर अराधना करंय।”

स्वरगदूतमन के बारे म परमेसर ह ए कहिथे,

“परमेसर ह अपन स्वरगदूतमन ला पवन,
    अऊ अपन सेवकमन ला धधकत आगी बनाथे।”[c]

पर बेटा के बारे म ओह कहिथे,

“हे परमेसर, तोर सिंघासन ह सदाकाल तक रहिही,
    अऊ धरमीपन ह तोर राज के राज-दंड होही।
तेंह धरमीपन ले मया करय अऊ अधरम ले घिन करय;
    एकरसेति, परमेसर,
    तोर परमेसर ह आनंद के तेल ले तोर अभिसेक करे के दुवारा तोला तोर संगीमन ले ऊपर करे हवय[d]।”[e]

10 ओह ए घलो कहिथे,

“हे परभू, सुरू म, तेंह धरती के नीव रखय,
    अऊ तेंह अपन हांथ ले स्वरगमन ला बनाय।
11 ओमन तो नास हो जाहीं,
    फेर तेंह बने रहिबे; ओमन जम्मो पहिरे के कपड़ा सहीं जुन्ना हो जाहीं।
12 तेंह ओमन ला चादर सहीं घरियाबे;
    अऊ ओन्ढा के सहीं ओमन बदल दिये जाहीं।
फेर तेंह हमेसा वइसनेच के वइसने रहिथस,
अऊ तेंह कभू डोकरा नइं होवस।”[f]

13 परमेसर कभू कोनो स्‍वरगदूत ला ए नइं कहिस,

“मोर जेवनी हांथ कोति बईठ,
जब तक कि मेंह तोर बईरीमन ला तोर गोड़ तरी के चौकी नइं बना देवंव।”[g]

14 का जम्मो स्वरगदूतमन सेवा करइया आतमा नो हंय? हव, ओमन अंय। अऊ ए स्वरगदूतमन ओमन के सेवा करे खातिर पठोय जाथें, जऊन मन उद्धार पाहीं।

Footnotes

  1. 1:5 भजन-संहिता 2:7
  2. 1:5 2समूएल 7:14; 1इतिहास 17:13
  3. 1:7 भजन-संहिता 104:4
  4. 1:9 तेल ले अभिसेक करे के मतलब बड़े आदर खातिर चुनना ए।
  5. 1:9 भजन-संहिता 45:6-7
  6. 1:12 भजन-संहिता 102:25-27
  7. 1:13 भजन-संहिता 110:1