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हे मोर भाईमन हो, तुमन ले बहुंत झन गुरू झन बनव, काबरकि तुमन जानत हव कि गुरूमन के अऊ कड़ई ले नियाय होही। हमन जम्मो झन अक्सर गलती करथन। जऊन कोनो अपन गोठ म कभू गलती नइं करय, ओह सिद्ध मनखे ए; अऊ ओह अपन देहें ला बस म कर सकथे।

जब हमन अपन गोठ ला मनवाय बर घोड़ामन के मुहूं म लगाम लगाथन, त हमन ओकर पूरा देहें ला घलो अपन बस म कर लेथन। देखव, पानी जहाज घलो, जऊन ह बहुंत बड़े होथे; अऊ तेज हवा के दुवारा चलथे, तभो ले एक नानकून पतवार के दुवारा मांझी ह अपन ईछा के मुताबिक ओला जिहां चाहथे उहां ले जाथे। वइसनेच जीभ ह घलो देहें के एक नानकून अंग ए, पर ओह बहुंते डींग मारथे। देखव, एक नानकून आगी के चिनगारी ले कतेक बड़े जंगल म आगी लग जाथे। जीभ ह घलो आगी सहीं अय। एह हमर देहें म अधरम के एक संसार ए। एह एक अइसने आगी ए, जऊन ला नरक कुन्‍ड के आगी ले बारे गे हवय अऊ पूरा जिनगी म आगी लगाके मनखे ला बरबाद कर देथे।

हर एक किसम के जीव-जन्तु, चिरई अऊ पेट के भार रेंगइया जीव-जन्तु अऊ पानी के जीव-जन्तु, मनखेमन के बस म हो सकथें अऊ ओमन बस म हो घलो गे हवंय। पर जीभ ला कोनो मनखे अपन बस म नइं कर सकय। ओह अइसने सैतान ए, जऊन ह कभू चुप नइं रहय। ओह अइसने जहर ले भरे हवय, जऊन ह परान ले लेथे।

जीभ ले हमन परभू अऊ ददा के महिमा करथन अऊ इही जीभ ले मनखेमन ला सराप घलो देथन, जऊन मन परमेसर के सरूप म बनाय गे हवंय। 10 ओहीच मुहूं ले महिमा अऊ सराप दूनों निकरथे। हे मोर भाईमन हो, अइसने नइं होना चाही। 11 का मीठा अऊ नूनचूर पानी झरना के एकेच मुहूं ले निकर सकथे? 12 हे मोर भाईमन, का अंजीर के रूख म जैतून या अंगूर के नार म अंजीर फर सकथे? वइसने नूनचूर झरना ले मीठा पानी नइं निकर सकय।

दू किसम के बुद्धि

13 तुमन म बुद्धिमान अऊ समझदार कोन ए? ओह अपन काम अऊ बने चाल-चलन के दुवारा एला नमरता सहित देखावय, जऊन ह बुद्धि ले उपजथे। 14 पर कहूं तुमन अपन मन म भारी जलन अऊ सुवारथ रखथव, त एकर बर घमंड झन करव अऊ सत के बिरोध झन करव। 15 अइसने बुद्धि ह स्‍वरग ले नइं आवय, पर एह संसारिक, सारीरिक अऊ सैतान के अय। 16 काबरकि जिहां जलन अऊ सुवारथ होथे, उहां झंझट अऊ हर किसम के बुरई पाय जाथे।

17 पर जऊन बुद्धि ह स्‍वरग ले आथे, ओह पहिली सुध, ओकर बाद मिलनसार, कोमल, नम्र सुभाव, दया, अऊ बने फर ले भरे रहिथे अऊ ओम भेदभाव अऊ कपट नइं रहय। 18 अऊ जऊन मेल-मिलाप करइयामन ह मेल-मिलाप करवाथें, ओमन धरमीपन के फर उपजाथें।