नीतिवचन 18
Awadhi Bible: Easy-to-Read Version
18 कछू मनई आपन इच्छा क अनुसार काम करत ही। जदि दूसर कउनो ओनका सलाह देत ह तउ उ कोहान जात ह।
2 मूरख जन दूसर स सीखइ मँ खुस नाही होत ह। उ जउन कछू सोचत ह उहइ बोलत मँ खुस होत ह।
3 लोग दुट्ठ व्यक्ति क नाही चाहवत ह। लोग मूरख लोग क मजाक उड़ावत ह।
4 बुद्धिमान क सब्द गहिर जल क नाईं होत हीं, उ पचे बुद्धि क सोता स उछरत भए आवत हीं।
5 दुट्ठ जन क पच्छ लेब अउर निर्दोख क निआव स वंचित राखब उचित नाहीं होत।
6 मूरख क होठंन बात-बिवाद क जनम देत ह अउर आपन मुँह क कारण उ पिटा जात ह।
7 मूरख क मुँह ओकरे कामे क बिगाड़ देत ह अउर ओकर आपन ही होंठन क जाले मँ ओकर परान फंसि जात ह।
8 लोग हमेसा गपसप सुनइ चाहत ही। इ उत्तिम भोजन क नाई अहइ जउन पेट क भीतर उतरत चला जात ह।
9 जउन अपन काम मंद गति स करत ह, उ ओकर भाई अहइ, जउन विनास करत ह।
10 यहोवा क नाउँ एक सुदृढ़ गढ़ क नाईं अहइ। उ कइँती धर्मी जन दौड़ जात हीं अउर सुरच्छित रहत हीं।
11 धनिक समुझत हीं कि ओनकर धन ओनका बचाइ लेइ उ पचे समुझत हीं कि उ एक सुरच्छित किला अहइ।
12 पतन स पहिले मन अंहकारी बन जात ह, मुला सम्मान स पूर्व विनम्रता आवत ह।
13 बात क बिना सुने ही, जउन जवाब मँ बोल पड़त ह, उ ओकर बेवकूफी अउ ओकर अपजस अहइ।
14 मनई क मन ओका बियाधि मँ थामे राखत ह; मुला टूटे हिरदय क भला कउनो कइसे थामइ।
15 बुद्धिमान क मन गियान क पावत ह, बुद्धिमान क कान एका खोज लेत हीं।
16 उपहार देइवाले क मारग उपहार खोलत ह अउर ओका महापुरुसन क समन्वा पहोंचाइ देत ह।
17 पहिले जउन बोलत ह ठीक ही लागत ह मुला बस तब तलक ही जब तलक दूसर ओहसे सवाल नाहीं करत ह।
18 अगर दुइ बरिआर आपुस मँ झगड़त होइँ, उत्तिम अहइ कि ओनके झगड़न क पाँसा बहाइके निपटाउब।
19 रूठे भए बन्धु क मनाउब कउनो गढ़ वाला सहर क जीत लेइसे जियादा कठिन अहइ। अउर आपुसी झगड़न अइसे होत ही जइसे गढ़ी क मुँदे दुआर होत हीं।
20 मनई क पेट ओकरे मुँहे क फले स ही भरत ह, ओकरे होंठन क खेती क प्रतिफल ओका मिलत ह।
21 जीभ क वाणी जिन्नगी अउर मउत क सक्ति रखत ह। अउर जउन वाणी स पिरेम राखत हीं, उ पचे ओकर फल स आनन्दित होत हीं।
22 जेका नीक पत्नी मिली अहइ, उ उत्तिम पदार्थ पाएस ह। ओका यहोवा क अनुग्रह मिलत ह।
23 गरीब जन तउ दाया क माँग करत ह, मुला धनी जन तउ कठोर जवाब देत ह।
24 बहोत सारे मीतन क संगत तबाही लाइ सकत ह। किंतु आपन घनिष्ठ मीत भाई स भी उत्तिम होइ सकत ह।
Awadhi Bible: Easy-to-Read Version. Copyright © 2005 Bible League International.